देओली (ऊना)।
हिमाचल की गोद से निकले कलाकार अश्वनी भारद्वाज, जिन्हें लोग प्यार से “अनु देओली आला” कहते हैं, आज उन गिने-चुने नामों में हैं जिन्होंने अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और अब तकनीक को मिलाकर संगीत को नई दिशा देने का काम किया। लेकिन उनकी यह यात्रा आसान नहीं रही।
🎶 “Menu Nachave Sham” से मिली पहली पहचान
अनु देओली आला की पहली सोलो एलबम “Menu Nachave Sham” श्रोताओं के बीच काफ़ी मशहूर हुई। इस एलबम ने उन्हें एक पहचान दी और इसके बाद उन्होंने देओली में अपना स्टूडियो स्थापित किया।
यहां से उन्होंने कई नए कलाकारों को मौका दिया और Una Number चैनल, वेबसाइट्स, फेसबुक और यूट्यूब जैसे मंचों पर उभरते कलाकारों को जनता के सामने लाकर उन्हें पहचान दिलाई।
⛪ मंदिरों की पहचान – अधूरा सफ़र
संगीत से इतर अनु ने अपने क्षेत्र की आध्यात्मिक धरोहर को बचाने का प्रयास भी किया। उन्होंने अपने चैनल पर एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें हिमाचल के प्राचीन मंदिरों की पहचान और उनकी इतिहास को लोगों तक पहुँचाने की कोशिश की गई।
कई मंदिर जो लोगों की यादों से धुंधले हो गए थे, उन्हें उन्होंने फिर से सामने लाने का प्रयास किया। लेकिन अफ़सोस, यह कार्यक्रम भी लंबा नहीं चल पाया क्योंकि इसमें उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिला।
उनका दर्द साफ़ झलकता है:
“संस्कृति और इतिहास की बात पर लोग चुप हो जाते हैं। ताली तो बस दिखावे और शोर पर बजती है।”
💡 AI से संगीत का नया मुकाम
अनु देओली आला ने तकनीक को अपनाकर साबित कर दिया कि संगीत अब केवल सुरों और वाद्य यंत्रों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने AI और आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर अब तक हज़ारों गाने तैयार कर दिए हैं।
अनु का दावा है कि वे सिर्फ पाँच मिनट में किसी भी विषय पर गीत बना सकते हैं। उनका कहना है कि —
“शादियों के लिए, किसी की याद में, किसी के नाम से या किसी भी खास मौके पर, लोग मुझसे गीत बनवा सकते हैं। AI की मदद से कोई भी विषय गीत का रूप ले सकता है।”
वे यह भी बताते हैं कि इस काम के लिए AI से जुड़े कुछ कोर्सेज़ और पेड सर्विसेज़ लेनी पड़ती हैं, लेकिन सही तकनीक और मेहनत से वे किसी भी तरह का गीत तैयार कर सकते हैं।
उनका मानना है कि AI ने संगीत को नई रफ़्तार और नई दिशा दी है, और यह आने वाले समय में कलाकारों के लिए एक सशक्त हथियार साबित होगा।
🙏 कर्नैल राणा – धरती से जुड़े कलाकार
अनु देओली आला मानते हैं कि हिमाचल में अगर कोई कलाकार आज भी सच्चे अर्थों में धरती से जुड़ा हुआ है तो वे हैं कर्नैल राणा जी।
उनका सोशल मीडिया छोटे-छोटे कलाकारों के साथ किए गए असंख्य सहयोगों (Collaborations) से भरा पड़ा है।
सबसे अहम बात यह है कि उन्होंने कभी भी Paid Collaboration नहीं की।
उनका मानना है:
“कला का असली मूल्य पैसों से नहीं, बल्कि कलाकार की मेहनत और उसके जज़्बात से होता है।”
यही कारण है कि वे लगातार छोटे कलाकारों को प्रोत्साहित करते रहते हैं और उनकी मेहनत को आगे बढ़ाते हैं।
🤝 सहयोग और गगरेट हलचल का उदाहरण
अनु का कहना है कि आज हिमाचल में कलाकारों को सहयोग बहुत कम मिलता है।
उनके शब्दों में:
“जब तक सोशल मीडिया पर आप बेकार और फालतू बातें नहीं करते, तब तक लोग आपको पहचानते नहीं।”
वे उदाहरण देते हैं गगरेट हलचल चैनल का, जिसके पास एक लाख से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं और जो हर उभरते कलाकार का बहुत कम पैसों में प्रचार करता है। यही नहीं, यह चैनल क्षेत्र की हर बड़ी-छोटी ख़बर भी जनता तक पहुँचाता है।
अनु की सोच है:
“अगर हमें सचमुच कलाकारों को आगे बढ़ाना है तो हमें ऐसे मंचों को सहयोग देना चाहिए। अगर हम सब मिल-जुलकर काम करेंगे, तभी सोशल मीडिया की इस रोज़ी-रोटी की जंग जीती जा सकेगी।”
😔 संघर्ष और उपेक्षा
अनु देओली आला ने अब तक शिवबाड़ी गगरेट, सदाशिव मंदिर, वीरभद्र सिंह, चंबा, कांगड़ा, शिमला और हिमाचल के लगभग हर जिले पर गीत बनाए हैं।
वे भजन गायक भी हैं और उनके पंजाबी में लिखे गए पाँच भजनों की ऑडियो रिकॉर्डिंग आज भी पड़ी है। उन्होंने अंग्रेज़ी गीत भी लिखे हैं।
इसके बावजूद उन्हें अब तक किसी बड़े मंच या प्लेटफ़ॉर्म से वह सहयोग नहीं मिला जिसकी वे हक़दार हैं।
उनकी पीड़ा साफ है:
“हिमाचल का हर कलाकार अपने वजूद की लड़ाई अकेला लड़ रहा है। यहाँ कोई भी किसी दूसरे कलाकार की मेहनत को न साझा करता है, न उसकी पीठ थपथपाता है।”
✨ निष्कर्ष
अश्वनी भारद्वाज उर्फ़ अनु देओली आला की कहानी केवल एक कलाकार की नहीं, बल्कि हर उस प्रतिभा की आवाज़ है जिसे समाज और मंच ने नज़रअंदाज़ किया।
उन्होंने अपने गीतों से संस्कृति, मंदिरों, समाज और लोगों को जोड़ा, तकनीक को अपनाकर संगीत को नई ऊँचाई दी। लेकिन सबसे बड़ी सच्चाई यही रही कि उन्हें सहयोग नहीं मिला।
फिर भी उनकी उम्मीद आज भी कायम है —
“अगर हिमाचल के कलाकार मिलकर एक-दूसरे का हाथ थाम लें, तो हमारी आवाज़ सिर्फ़ पहाड़ों तक नहीं रहेगी, बल्कि पूरी दुनिया में गूंजेगी।”