प्रचलित धारणा है
जब हिमाचल में छोटे-छोटे रजवाड़ों का राज हुआ करता था। एक बार औहर इलाके में पानी की कमी हो गई, हर तरफ सूखा ही सूखा पड़ गया। पशु, जानवर और फिर धीरे-धीरे इंसान प्यास से मरने लग गए। राजा को यह देखकर चिंता होने लगी। फिर एक रात राजा के सपने में उनकी कुल देवी ने दर्शन दिए और समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि ‘अगर तुम अपने बड़े बेटे की बलि देते हो तो पानी की समस्या दूर हो जाएगी’ इतना कहकर देवी मां सपने से चली गई।
मां के सपने में आने के बाद राजा चिंता में रहने लगा। उस वक्त राजा की बहू रुक्मणी अपने दुधमुहे बेटे के साथ माइके (तरेड़ गांव) में गई हुई थी। उधर पानी की किल्लत बढ़ती जा रही थी। नदियां-नालें सूख रहे थे और इधर बेटे के बलि के बारे में सोचकर राजा की चिंता सातवें
आसमान पर थी। राजा को जब कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपने पंडित के साथ सलाह की। कहा जाता है कि पंडित ने पहले राजा को बिल्ली की बलि देने को कहा लेकिन राजा ने ये कहकर मना कर दिया कि वो अगले सात जन्मों के लिए पाप का भागी हो जाएगा गया। लेकिन इसके बाद पंडित ने बहु की बलि देने कहा तो राजा मान गया। राजा ने जरा सी भी देर न करते हुए रुक्मणी को मायके से बुलावा भेजा। रुक्मणी जैसे ही ससुराल पहुंची तो राजा ने सारी बात उसके सामने साफ कर दी। रुक्मणी आदर्श बहु थी वह ना तो अपने ससुर का कहा मोड़ना चाहती थी और ना ही पति की बलि होते देख सकती थी। लिहाजा उसने अपना बलिदान देने का फैसला ले लिया।
रुकमणी ने अपने ससुर की बात मान ली। इसके बाद दिन और जगह निश्चित हुई और राजा ने मिस्त्रियों को बुलाकर बरसंड में बहु की बलि दे दी। कहा जाता है जब रुक्मणी की चिनाई हो रही थी तो उसने मिस्त्रियों से कहा कि ‘कृपया मेरी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रखें,
क्योंकि मेरा बच्चा छोटा है वह दूध पीने आया करेगा, और अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो उसके जिगर का टुकड़ा मर जाएगा’। राजा ने बहु की बात मान ली और उसकी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रख दिया गया।
बताया जाता है कि जैसे ही रुक्मणी की चिनाई पूरी की गई तो उसकी छाती (स्तनों) से दूध की धारा बहने लगी। लेकिन बाद में यहां से पानी निकलने लगा। धीरे-धीरे रुक्मणी की छाती से निकलने वाले पानी की जगह पर एक कुंड बन गया जिसे आज रुक्मणी कुंड कहा जाता है। आज भी उस स्थान पर वो पत्थर साफ देखे जा सकते हैं। जिनमें रुक्मणी की चिनाई की गई थी।
रुक्मणि कुंड